📉 कभी-कभी कंपनियाँ अपने शेयरों को Stock Exchange से हटाने का निर्णय लेती हैं, जिसे Delisting कहा जाता है। इसके बाद, कुछ मामलों में कंपनी अपने शेयरों को फिर से सूचीबद्ध भी कर सकती है, जिसे Relisting कहते हैं। आइए समझते हैं कि शेयरों की डीलिस्टिंग और रीलिस्टिंग क्या होती है और इसके पीछे क्या कारण होते हैं।
शेयरों की डीलिस्टिंग क्या है?
Delisting का मतलब है किसी कंपनी के शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज की लिस्टिंग से स्थायी रूप से हटाना। डीलिस्टिंग दो प्रकार की होती है:
1. अनिवार्य डीलिस्टिंग (Mandatory Delisting)
अगर कंपनी ने SEBI के नियमों या लिस्टिंग एग्रीमेंट का पालन नहीं किया, तो कंपनी को अनिवार्य रूप से डीलिस्ट करना पड़ सकता है।
2. स्वैच्छिक डीलिस्टिंग (Voluntary Delisting)
कंपनी अपने शेयरों को एक्सचेंज से हटाने और प्राइवेट कंपनी बनने का विकल्प चुन सकती है। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि रिपोर्टिंग की जटिलताएँ, कॉम्प्लायंस खर्च कम करना, या कंपनी की नई बिजनेस स्ट्रेटेजी।
स्वैच्छिक डीलिस्टिंग की प्रक्रिया
सेबी (SEBI) के नियमों के तहत, स्वैच्छिक डीलिस्टिंग के लिए प्रमोटर समूह को निम्नलिखित करना होता है:
प्रमोटर समूह को Reverse Book Building Process के जरिए शेयरधारकों से शेयर खरीदने के लिए बोली लगानी होती है।
प्रमोटर को एक Floor Price यानी न्यूनतम कीमत तय करनी होती है।
शेयरधारक उस मूल्य पर शेयर बेचने के लिए अपनी बोली लगाते हैं।
प्रमोटर इस बोली को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है या काउंटर ऑफर दे सकता है।
डीलिस्टिंग तभी संभव है जब प्रमोटर की हिस्सेदारी 90% से अधिक हो।
कम से कम 25% पब्लिक शेयरधारकों को इस प्रक्रिया में भाग लेना जरूरी है।
डीलिस्टिंग के बाद शेयरधारकों का अधिकार
अगर डीलिस्टिंग के बाद भी कुछ शेयर पब्लिक के पास हैं, तो प्रमोटर को उन शेयरों को एक साल के अंदर Exit Price पर खरीदना होगा। अल्पसंख्यक शेयरधारकों को जबरन बाहर नहीं निकाला जा सकता।
शेयरों की रीलिस्टिंग (Relisting)
डीलिस्टिंग के बाद कंपनी अपने शेयरों को फिर से लिस्ट कर सकती है, लेकिन कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है:
स्वैच्छिक डीलिस्टिंग के बाद 5 साल तक कंपनी रीलिस्टिंग के लिए आवेदन नहीं कर सकती।
अनिवार्य डीलिस्टिंग के बाद कंपनी को 10 साल तक रीलिस्टिंग के लिए इंतजार करना होगा।
यह नियम SEBI के (Equity Shares Delisting) Regulations 2009 के तहत लागू हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
Delisting और Relisting कॉर्पोरेट जगत की अहम प्रक्रियाएँ हैं जो कंपनी के बाजार में उसकी स्थिति और रणनीति को दर्शाती हैं। डीलिस्टिंग से कंपनी को फ्रीडम मिलती है अपनी रणनीति बदलने की, जबकि रीलिस्टिंग से वह फिर से सार्वजनिक बाजार में वापसी कर सकती है। निवेशकों को इन प्रक्रियाओं को समझना जरूरी है ताकि वे सही निवेश निर्णय ले सकें।
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