Valuation के दृष्टिकोण – निवेश से पहले सही नजरिया अपनाना जरूरी है ?

 Valuation के दृष्टिकोण – निवेश से पहले सही नजरिया अपनाना जरूरी है ?

किसी Business या Asset की सही Value पता करने के लिए हमें सिर्फ उसकी Price नहीं देखनी चाहिए, बल्कि यह समझना चाहिए कि उसकी असली Worth क्या है। इसके लिए इस्तेमाल होते हैं तीन प्रमुख Valuation Approaches, जिनमें से हर एक का अपना नजरिया, तरीका और उपयोग का दायरा होता है।

इस Blog में हम समझेंगे कि ये Approaches क्या हैं, कौन सा Investor किस Approach को चुनता है, और कब कौन सा तरीका ज्यादा प्रभावी होता है।


🏗️ 1. Cost-Based Valuation (लागत आधारित मूल्यांकन)

इस दृष्टिकोण में, Asset का मूल्य उस Cost के आधार पर तय किया जाता है जो उसे दोबारा बनाने या Replace करने में लगेगी।

🔍 कैसे काम करता है?

  • मान लीजिए कि कोई Factory ₹50 लाख में बनाई गई थी।

  • तो इस दृष्टिकोण से उस Factory की Value ₹50 लाख मानी जाएगी — यानी Reproduction या Replacement Cost

✅ कब उपयोगी है?

  • जब कोई Strategic Buyer (जैसे कोई Competitor या Promoter) Decide कर रहा हो कि Asset खरीदनी है या खुद से बनानी है।

  • Long-Term Vision रखने वाले Business Houses के लिए यह फायदेमंद हो सकता है।

❌ कब उपयुक्त नहीं?

  • Financial Investors (जैसे Stock Market Investors) के लिए यह Relevant नहीं होता, क्योंकि वे खुद से कोई Business बनाने की सोच नहीं रखते।


💸 2. Cash Flow-Based Valuation (नकदी प्रवाह आधारित मूल्यांकन)

Also known as: Intrinsic Valuation

यह दृष्टिकोण सबसे ज्यादा Practical और इस्तेमाल में लाया जाने वाला तरीका है। इसमें किसी Asset की Worth को उसके द्वारा भविष्य में उत्पन्न होने वाले Cash Flow के आधार पर मापा जाता है।

🔍 कैसे काम करता है?

  • Business कितना Cash Generate करेगा?

  • उस Cash को आज के Terms में Discount करके Present Value निकाली जाती है।

  • इसके लिए एक Discount Rate तय की जाती है, जो Risk और Return को Reflect करती है।

🧠 इसके दो प्रमुख प्रकार:

(a) Risk-Neutral Valuation

  • Future Cash Flows को उनकी Probability के साथ Adjust किया जाता है।

  • फिर उसे Risk-Free Rate से Discount किया जाता है।

  • आमतौर पर बीमा कंपनियों, वित्तीय संस्थानों के मूल्यांकन में प्रयोग होता है (जैसे: Embedded Value Method)।

(b) Real-World Valuation

  • Most Likely Cash Flows का अनुमान लगाया जाता है।

  • फिर उसे Risk-Free Rate + Risk Premium से Discount किया जाता है।

  • यही तरीका Equity Valuation में सबसे ज़्यादा उपयोग होता है।

✅ कब उपयोगी है?

  • जब आप Long-Term Investor हों

  • जब आप Company के Future Performance को Analyze कर पा रहे हों

  • जब Market Condition अस्थिर हो और Price Misleading हो


🔁 3. Market-Based Valuation (विक्रय मूल्य आधारित मूल्यांकन)

Also known as: Relative Valuation

इस दृष्टिकोण में किसी Asset की Value का आकलन Market में उपलब्ध Similar Assets की Price के Comparison से किया जाता है।

🔍 कैसे काम करता है?

  • Commonly used Ratios:

    • P/E (Price to Earnings)

    • P/B (Price to Book)

    • EV/EBITDA

  • Example: अगर Similar कंपनियां 20x P/E पर ट्रेड कर रही हैं, और आपकी Company 15x पर है, तो वह Undervalued मानी जा सकती है।

✅ कब उपयोगी है?

  • जब Market Efficient हो

  • Short-Term या Medium-Term Traders के लिए

  • Comparable Companies या Assets आसानी से उपलब्ध हों


🚫 Cost-Based Valuation की सीमाएं

Cost-Based Valuation की लोकप्रियता Engineers या Technical Experts में ज्यादा है, और Finance World में कम।
Why?
क्योंकि Financial Investors को Business Start नहीं करना होता, उन्हें सिर्फ Return चाहिए।
इसलिए हम इस Blog में Intrinsic और Market-Based Approaches पर ज्यादा Focus करते हैं।


🎯 निष्कर्ष (Conclusion):

दृष्टिकोण उपयोगकर्ता प्राथमिकता कब

Cost-Based

Strategic Buyers, Engineers

जब Build vs Buy का Decision लेना हो

Cash Flow-Based

Long-Term Investors

जब Future Cash Flow पर भरोसा हो

Market-Based

Retail Investors, Traders

जब Comparables उपलब्ध हों और Market Stable हो


Valuation सिर्फ एक Formula नहीं, बल्कि Investment Decision की Core Thinking है।
अगर आप भी Investment Decisions को सही दिशा में लेना चाहते हैं, तो इन Approaches की गहरी समझ रखना जरूरी है।

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